महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के विविध रूप : एक विवेवचन

Dr. Neeta Bajpayee 0009-0002-9623-070X Dr. Aashishnath Singh 0009- 0007-7108-4810

महिलाओं के प्रति हिंसा एकवैश्विक परिघटना है जो न केवल लगभग सार्वभौम है बल्कि समसामयिक रुप से  नॉर्वे स्वीडन डेनमार्क के अत्यधिक उन्नत समाजोंसे लेकर रवाण्डा बुरूण्डी कांगो जायरे जैसे विकासशील और विकसित समाजो तक यह एक महत्वपूर्णसमस्या बनी हुई है । एक सनातन समस्या भी है अर्थात प्राचीन काल से लेकर आधुनिक कालतक की समस्या बनी हुई है। पुनर्जागरण के पश्चात महिला अधिकारों के विस्तार के साथ महिलाओंके प्रति सम्मान में यद्यपि वृद्धि हुई है लेकिन महिलाओं के प्रति हिंसा की समस्याबनी हुई है। तकनीकी के विकास और प्रसार के साथ महिलाओं के प्रति हिंसा की रिपोर्टिंगऔर गणना में यद्यपि वृद्धि हुई है तथापि हिंसा में बहुत अधिक कमी दृष्टिगोचर नहीं है। महिलाओं के प्रति हिंसा के कुछ प्रतिरूप जैसे घरेलू हिंसा बलात्कार आदि प्राचीन कालसे बने हुए हैं किंतु देश काल परिस्थिति के अनुसार तथा तकनीकी के प्रभाव के कारण महिलाओंके प्रति हिंसा के नवीन रूप भी सामने आए हैं । साइबर अपराध,ऑनलाइन टीजिंग लैंगिक हिंसाके नए रूप हैं। हिंसक राजनीतिक आंदोलनो, गृह युद्धो, गुरिल्ला युद्धो, आतंकवाद जनितहिंसा मे महिलाओं को संपत्ति के रूप में इस्तेमाल करना, विरोधी समूह की महिलाओं केसाथ सामूहिक बलात्कार उनकी हत्या और उनको एक सामग्री के रूप में इस्तेमाल करना आदिसामयिक दुनिया मे महिलाओं के प्रति हिंसा के अन्य महत्वपूर्ण रूप हैं जिनसे महिलाओंकी बहुत बड़ी आबादी प्रभावित होती है । शीत युद्ध काल और उसके बाद होने वाले क्षेत्रीयसंघर्षों जैसे वियतनाम युद्ध ईरान इराक युद्ध और वर्तमान समय में चल रहे यूक्रेन युद्धआदि में महिलाओं को आसान निशाना बनाया जाता है । विशेषकर उनके साथ बलात्कार की घटनाएंबहुत ही आम है जो कि बहुत ही जघन्य अपराध है । इस प्रकार महिलाओं के प्रति हिंसा केनवीन रूप सामने आए हैं जिनका विवेचन आवश्यक है । यद्यपि इन सभी में सबसे प्रमुख सामान्यकारण जो सनातन काल से लेकर के आधुनिक काल तक बना हुआ है वह है पितृसत्तावाद और पितृसत्तावादसे बनने वाली मूल्य व्यवस्था । पितृसत्तावादी मूल्य व्यवस्था के कारण ही युद्ध मेंमहिलाओं को आसान निशाना बनाया जा सकता है और उनके साथ लैंगिक हिंसा की जाती है । इसीप्रकार घरेलू हिंसा के लगभग सभी रूप पितृसत्तावादी और पुरुषवादी सोच का परिणाम होतेहैं । इसलिए लैंगिक हिंसा को रोकने के लिए शिक्षा के प्रसार और सामाजिक मूल्य प्रणालीमें पितृसत्तावादी प्रभाव की निरंतर कमी आवश्यक है। जनजातीय समाजों में और स्कैंडिनेवियाके अत्यधिक आधुनिक समाजों में जहां लैंगिक हिंसा बहुत कम है वहां पितृसत्तावाद का प्रभावभी बहुत कम है।  पितृसत्तावाद का प्रभाव औरउसके प्रसार को रोकना और आधुनिई शिक्षाका प्रसार करना लैंगिक हिंसा को रोकने के लिएसर्वाधिक आवश्यक है ।

 

 

महत्वपूर्णशब्दावली : आनरकिलिंग, लैंगिक हिंसा, पितृसत्तावाद, महिलाओ के विरूद्धहिंसा,मूल्य व्यवस्था ।



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How to cite this article:
बाजपेयी एन. एवं सिंह ए. ( 2023) : महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के विविध रूप : एक विवेवचन ". 6 : 8 (2021) p. 68 - 78 DOI: -