साईंस कालेज, दुर्ग में राष्ट्रीय षिक्षा नीति 2020 के परिपालन में भूगर्भषास्त्र विभाग की नई पहल साईंस कालेज ने रूसा से प्राप्त राषि से विस्तार गतिविधि

 
साईंस कालेज, दुर्ग में राष्ट्रीय षिक्षा नीति 2020 के परिपालन में भूगर्भषास्त्र विभाग की नई पहल 
साईंस कालेज ने रूसा से प्राप्त राषि से विस्तार गतिविधि के अंतर्गत रिसाली एवं जामगांव आर कालेज में स्थापित की रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली 
वर्षा का जल संचयन वर्तमान समय की महती आवष्यकता है। हम सभी को अपने-अपने स्तर पर जल संग्रहण के हर संभव प्रयास करना चाहिए। हमारे द्वारा किया गया छोटा सा प्रयास बड़ी मात्रा में जल को संचयित करने में मददगार हो सकता है। ये उद्गार शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग के प्राचार्य डाॅ. अजय कुमार सिंह ने आज व्यक्त किये। डाॅ. सिंह राष्ट्रीय षिक्षा नीति 2020 के परिपालन में जन जागरूकता अभियान के अंतर्गत महाविद्यालय के भूगर्भषास्त्र विभाग द्वारा की गयी नई पहल के दौरान विद्यार्थियों को संबोधित कर रहे थे। उल्लेखनीय है कि महाविद्यालय के भूगर्भषास्त्र विभाग द्वारा रूसा मद में प्राप्त राषि से शासकीय नवीन महाविद्यालय, रिसाली भिलाई परिसर तथा शासकीय महाविद्यालय जामगांव आर परिसर में वर्षा जल संचयन के प्रति जन जागरूकता अभियान चलाकर इन महाविद्यालयों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली स्थापित की गई है। साईंस कालेज, दुर्ग द्वारा किए गए इस अभूतपूर्व सहयोग के लिए रिसाली महाविद्यालय की प्राचार्य डाॅ. अनुपमा अस्थाना एवं जामगांव आर महाविद्यालय की प्राचार्य डाॅ. षिखा अग्रवाल ने साईंस कालेज, दुर्ग प्रबंधन के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस प्रणाली की स्थापना से न केवल महाविद्यालय के विद्यार्थियों में जल संचयन के प्रति जागरूकता आयेगी अपितु पूरा महाविद्यालय परिवार इस प्रणाली के निरंतर संचालन एवं रख रखाव का हर संभव प्रयास करेगा।
भूगर्भषास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. एस.डी. देषमुख ने कहा कि इससे पूर्व भी साईंस कालेज, दुर्ग द्वारा शासकीय माध्यामिक विद्यालय, हनोदा, दुर्ग, शासकीय आत्मानंद उच्चतर माध्यामिक विद्यालय, दीपक नगर, दुर्ग तथा विज्ञान विकास केन्द्र सिविल लाईन्स, दुर्ग में रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली स्थापित की जा चुकी है। डाॅ. देषमुख के अनुसार इसके अच्छे परिणाम सामने आये है तथा इन जगहों पर भूमिगत जल स्तर में वृध्दि के संकेत मिले है, साथ ही लगभग 1000 से अधिक विद्यार्थियों में जल संचयन के प्रति जागरूकता भी आयी है। 
भूगर्भषास्त्र विभाग के सहायक प्राध्यापक डाॅ. प्रषांत श्रीवास्तव ने बताया कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली दो तरह से उपयोग में लायी जाती है। एक प्रणाली में वर्षा का जल जो कि सतह पर होता है, उसे संचयित किया जाता है, जबकि दूसरी प्रणाली में मकानों की छतो पर एकत्रित होने वाले वर्षा जल का संचयन किया जाता है, इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि कभी भी प्रदूषित जल को संचयित कर भूमिगत जल भंडारण हेतु नही भेजना चाहिए, इसके लिए वर्षा के संचयित जल को फिल्टर से गुजारना आवष्यक है, अन्यथा यदि एक बार भूमिगत जल भंडार प्रदूषित हो गया तो उसे कभी भी ठीक नही किया जा सकता। डाॅ. श्रीवास्तव के अनुसार इसी प्रकार वर्षा ऋतु के आरंभ में होने वाली पहली दो-तीन बारिष के पानी को संचयित नही करना चाहिए क्योंकि इस बारिष के पानी में वायु मण्डल में विद्यमान प्रदूषक तत्व धुले रहते है। इस प्रणाली के स्थापना में भूगर्भषास्त्र के डाॅ. विकास स्वर्णकार, डाॅ. इन्द्रजीत साकेत,      श्री देवव्रत तथा श्री तुलेष्वर का उल्लेखनीय योगदान रहा।