बहुआयामी भारतीय संस्कृति - प्रेमलता देवी

 
बहुआयामी भारतीय संस्कृति - प्रेमलता देवी 

शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग के हिन्दी विभाग द्वारा श्भारतीयसंस्कृतिश् विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस आयोजन में मुख्य वक्ता के रूप में केन्द्रीय विष्वविद्यालय, गुजरात, गांधी नगर में पदस्थ सहायक प्राध्यापक डाॅ. प्रेमलता देवी थी। 
कार्यक्रम के प्रारंभ में डाॅ. कृष्णा चटर्जी ने अपने स्वागत उद्बोधन में मुख्य वक्ता का परिचय सभागार में उपस्थित श्रोताओं को दिया। 
भारतीय संस्कृति पर व्याख्यान देते हुए डाॅ. प्रेमलता देवी ने कहा कि अपने वजूद को बचाये रखने के लिए हमें अपनी संस्कृति को बचाए रखना है। वसुदैव कौटुम्बकम हमारा आदर्ष और दृष्टिकोण है, जो हमारी जीवन शैली का अंग और संस्कार है। सर्वेभवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरायमय यहाॅं की षिक्षा और संस्कार का अंग है। कार्यक्रम के अंत में महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ. आर.एन. सिंह एवं हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. अभिनेष सुराना ने प्रमुख वक्ता डाॅ. प्रेमलता देवी के स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। कार्यक्रम का आभार वक्तव्य में डाॅ. अभिनेष सुराना ने कहा कि भारतीय संस्कृति का विष्व संस्कृति में अहम स्थान है। भारतीय संस्कृति विष्व संस्कृति को प्रभावित करता है। 

उक्त कार्यक्रम में वरिष्ठ प्राध्यापक डाॅ. बलजीत कौर, डाॅ. सलूजा मैडम, डाॅ. अनुपमा अस्थाना, डाॅ. कुलकर्णी मैडम, डाॅ. जय प्रकाष साव, प्रो. अन्नपूर्णा महतो, डाॅ. सरिता मिश्र, डाॅ. ओम कुमारी , डाॅ. शारदा सिंह, डाॅ. लता गोस्वामी और महाविद्यालय के अन्य विभाग के प्राध्यापकगण एवं शोधार्थीगण और विद्यार्थीगण बड़ी संख्या में उपस्थित रहें। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. संजू सिन्हा ने किया।