कथा देखने और सुनने से पैदा होती है - शिवमूर्ति

 
कथा देखने और सुनने से पैदा होती है - शिवमूर्ति
शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय दुर्ग में हिंदी विभाग के तत्वावधान में दिनांक 11 अक्टूबर 2022 को पूर्वान्ह 11 बजे विवेकानंद सभागार में देश के सुप्रसिद्ध कथाकार श्री शिवमूर्ति (लखनऊ) का कहानी पाठ तथा संवाद का कार्यक्रम आयोजित किया गया।  कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती वंदना तथा स्वागत गीत के साथ हुआ। विभाग की ओर से स्वागत भाषण वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ बलजीत कौर ने दिया। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि विभाग द्वारा समय-समय पर विभिन्न विद्वानों को आमंत्रित कर उनका व्याख्यान, रचना पाठ तथा संवाद का कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन आयोजनों का उद्देश्य होता है कि विद्यार्थियों में साहित्य की समझ पैदा हो सके , उनमें रचनाशीलता तथा रचनादृष्टि का विकास हो सके।  इस आयोजन में उपस्थित अंचल के कथाकार श्री कैलाश बनवासी ने शिवमूर्ति जी का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि शिवमूर्ति जी का यहां आना अवध के आकाश का छत्तीसगढ़ में छा जाना है।  वे अवध की धरती, वहां की मिट्टी के साथ आए हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में स्त्रियों की दशा, टूटते बिखरते गांव, किसानों, मजदूरों, दलितों की विवशता तथा जिजीविषा के संघर्ष को चित्रित किया है।  महाविद्यालय के प्राध्यापक एवं आलोचक डॉ जयप्रकाश ने कहा - अवध के साथ हमारी बोली बानी की समानता है इसलिए अवध की संस्कृति के प्रति  लगाव है।  शिवमूर्ति जी ने ग्रामीण जीवन का यथार्थ खासकर आजादी के बाद के गांव का यथार्थ बहुत प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत किया है। शिव मूर्ति ने जिस तरह से अवध अंचल के यथार्थ को चित्रित किया है उसी तरह छत्तीसगढ़ के लोग जीवन के दुख दर्द को चित्रित करने के लिए छत्तीसगढ़ को शिवमूर्ति की तरह के रचनाकार का इंतजार है। 
कथाकार श्री शिवमूर्ति जी ने ष्सिरी उपमा जोगष् शीर्षक कहानी का पाठ किया। कहानी के पाठ से कथावस्तु खुलता गया। उसमें स्त्रियों की दशा, आर्थिक आत्मनिर्भरता के अभाव में पर निर्भरता, परिवार और समाज का भय जैसी बहुत सी बातें उभर कर आयीं जिसे श्रोताओं ने पूरे मनोयोग से सुना। कहानी पाठ के बाद शिवमूर्ति जी ने कहा कि जब तक स्त्रियां शिक्षित, आत्मनिर्भर तथा न्याय के लिए संगठित नहीं होंगी, उनकी दशा नहीं सुधर सकती। 
विद्यार्थियों ने कहानी के प्रति अपनी जिज्ञासा के बहुत से सवाल शिवमूर्ति जी से पूछे, जिनका उन्होंने विस्तार पूर्वक उत्तर देते हुए कहा कि रचना देखने सुनने से बनती है।  हम समाज के हर वर्ग के लोगों की बातें कान लगाकर सुने तथा स्थितियों को खुली आंखों से देखें, यही रचना प्रक्रिया है।  
कार्यक्रम में विद्यार्थियों के अलावा दुर्ग भिलाई के प्रतिष्ठित साहित्यकार लोकबाबू, कैलाश बनवासी, शरद कोकास, बुद्धिलाल पाल, घनश्याम त्रिपाठी, अजय साहू, अंजन कुमार तथा विभाग के प्राध्यापक डॉ कृष्णा चटर्जी, रजनीश उमरे, सरिता मिश्र ओमकुमारी देवांगन एवं महाविद्यालय के वरिष्ठ अध्यापक प्रोफेसर ए.के. खान उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ रजनीश उमरे ने तथा आभार प्रदर्शन   प्रो. थानसिंह वर्मा ने किया।