कोविड- 19 एवं अर्थव्यवस्था : संकट और चुनौतियाँ

डॉ. लखन चौधरी - कल्याण स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, सेक्टर-7, भिलाई नगर, जिला-दुर्ग (छ.ग.)

कोविड- 19 वैष्विक महामारी संकट एवं त्रासदी को लेकर इस समय पूरी दुनिया में अफरातफरी, दहशत एवं खलमली मची हुई है। जहाँ एक तरफ दुनिया के सामने लोगों की जिंदगी बचाने की चिंता है, वहीं दूसरी ओर कारोबार, व्यापार-व्यवसाय, उद्योग-धंधे एवं अर्थव्यवस्थाओं को बचाने की चिंता भी बरकरार है। लोगों की जान बचाने और कोरोना वायरस के संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए भारत सहित दुनियाभर के सैकड़ों विकसित एवं विकासशील देशों ने अपने-अपने हिसाब से पिछले साल कई सप्ताह-महिने तक के लिए अपने-अपने देश में लॉकडाउन किया है, और अब फिर से वही दौर शुरू हो चुका है। पिछले अनुभवों के आधार पर इससे वायरस के संक्रमण के फैलाव को रोकने में बहुत हद तक सफलता मिली है, लेकिन इससे आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है कारोबार व्यापार-व्यवसाय, उद्योग-धंधों सहित लगभग सभी आर्थिक गतिविधियों के लंबे समय तक बंद रहने से दुनियाभर की विकसित एवं विकासशील सभी प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं में हताशा, निराशा, सुस्ती एवं मंदी छाई हुई है। भारत सहित दुनिया के लगभग सभी देशों में कारोबार, व्यापार-व्यवसाय उत्पादन ठप होने के कारण व्यापक पैमाने पर नौकरियों से छंटनी के कारण बेरोजगारी दर में भारी बढ़ोतरी देखी जा रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में भारत में बेरोजगारी दर 23-25 प्रतिशत तक पहुंच गई थी और विकासदर 24 प्रतिशत तक के ऋणात्मक स्तर पर पहुंच गया था कारखाने, उद्योग-धंधे एवं औद्योगिक उत्पादन सहित सभी आर्थिक कारोबारी गतिविधियां लंबे समय तक बंद होने के कारण श्रमिको कामगारों का भारी मात्रा में पलायन हुआ। प्रवासी श्रमिको के पलायन या घर वापसी के कारण देश-दुनिया में कोहराम मचा। इससे जहां एक तरफ बेरोजगारी बढ़ रही है, वही दूसरी तरफ देश के ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी के साथ वायरस का संक्रमण फैला। इस वैश्विक महामारी एवं त्रासदी से उबरने और निकलने के लिए दुनियाभर में अपने-अपने तरीके से सर्वाधिक और सर्वोत्तम प्रबल प्रयास एवं उत्कृट उपक्रम जोरों से हुए एवं हो रहे हैं। अभी सबकी चिंताएं केवल इतनी है कि कैसे भी इस संकट से उबरा जाए, कैसे भी करके इस महामारी से लोगों को बचाया जाए लेकिन अब सरकारों के साथ जनमानस को भी यह चिता सताने लगी है कि कोविड-19 संकट के बाद क्या होगा ? देश-दुनिया में क्या-कुछ बदलेगा? कितना बदलेगा? लोग कितने बदलेंगे ? लोगों की जीवनचर्या या जीवनशैली कितनी बदलेगी? खान-पान, रहन-सहन के तौर-तरीके कितने और किस तरह बदलेंगे? इस बीच सरकार अर्थव्यवस्था में सुधार के नाम से देश के सार्वजनिक क्षेत्रों का तेजी के साथ निजीकरण करने में लगी हुई है। जबकि इस समय देश की अर्थव्यवस्था में छाई सुस्ती एवं मंदी को दूर करने के उपाय एवं समाधान के लिए सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों को साथ लेकर ही चलने की जरूरत है, जैसे कि अभी तक देश मिश्रित अर्थव्यवस्था के साथ चलकर विकास किया है। सार्वजनिक क्षेत्र में व्याप्त भष्ट्राचार, लालफीताशाही नौकरशाही अफसरशाही, भाई भतीजावाद, फिजूलखर्ची को रोकने और इस पर कठोर नियंत्रण लगाने की आवश्यकता है। इधर हमारे सरकारी तंत्र की खामियों एवं नाकामियों ने देश के करोड़ों प्रवासी श्रमिकों एवं कामगारों को सड़कों पर बेबस छोड़कर प्रवासी कामगारों एवं श्रमिकों के साथ दोहरा अन्याय किया। एक तो उन्हें लॉकडाउन कालखण्ड का वेतन नहीं दिया जिसके कारण वे मजबूरन घर लौटने को विवश हुए, दूसरी तरफ सरकार उन्हें सुरक्षित तरीके से घर पहुंचाने में नाकाम रही उपर से काम के घंटे बढ़ाने वाले श्रम कानून में रातोंरात बदलाव करते हुए मजदूरों पर एक और कुठाराघात किया गया। चार घंटे प्रतिदिन काम के घंटे बढ़ाने संबंधी श्रम कानून में रातों-रात बदलाव एवं परिवर्तन कर दिया गया है। इस नये श्रम कानून के अनुसार अब प्रतिदिन 8 घंटे के स्थान पर प्रतिदिन 12 घंटे और प्रति सप्ताह 72 घंटे की कार्यअवधि लागू करने की बात है।

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How to cite this article:
लखन सी (2021) : कोविड- 19 एवं अर्थव्यवस्था : संकट और चुनौतियाँ Research Expression 4 : 6 (2021) 21 - 26