आज तीसरी दुनिया में प्रौद्योगिकी का साम्राज्य स्थापित हो चुका है। एक तरफ संस्कृति के भौतिक पक्ष ने समाज के सभी क्षेत्रों (शैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक इत्यादि) अपने नवीन संसाधनों से उनकी संरचना को बदल डाला है, वहीं दूसरी ओर अभौतिक पक्ष ने मानव को मशीन बना डाला है। अब हमारी पुरानी रीति-रिवाज, नातेदारी प्रथा कानून इत्यादि सभी ऐतिहासिक हो चुके हैं एवं इनके स्थान पर प्रौद्योगिकी युक्त नये मूल्य व प्रतिमान स्थापित हो गये हैं। मोबाइल फोन, स्मार्ट फोन, टेबलेट, आईपैड, इंटरनेट, सोशल मीडिया इत्यादि हमारे शुरुआती दिनों से अब तक हमारे जीवन का हिस्सा हो चुके हैं।
सामाजिक व्यवस्था का प्राथमिक पक्ष शिक्षा है जो मानव को सत्य एवं असत्य में भेद करना सिखाती है, उसने भी प्रौद्योगिकी से जुड़कर "ई- शिक्षा" का स्वरूप प्राप्त कर लिया है। शिक्षा स्थानीय न होकर वैश्विक हो गई है। प्रशिक्षक, प्रत्यक्ष शिक्षक न होकर परोक्ष रूप से "रोबोट" हो गये हैं। आज "ई शिक्षा" का प्रभाव शहर के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं पूर्णतः तो कही अंशतः देखा जा सकता है। ई - शिक्षा पद्धति जीवन के हर पक्षों को किस तरह प्रभावित कर रही है और ग्रामीण परिवेश में इसकी क्या प्रासंगिकता है, यही जानने का प्रयास प्रस्तुत शोध पत्र में किया गया है।