वैश्वीकरण समाजवैज्ञानिकों, वैज्ञानिकों, राजनीतिक-आर्थिक चिन्तकों तथा अन्य बुद्धिजीवियों के बीच बड़ी बेबाकी से प्रयोग में लाया जा रहा है। हालाँकि यह सच है कि परिवर्तनों के इस तीव्र दौर में समाज का हर पहलू वैश्वीकरण की प्रक्रिया की चपेट में है। संस्कृति और समाज के प्रत्येक पहलू पर इस प्रक्रिया का प्रभाव दिखाई देता है। संस्कृति के सभी पक्ष चाहे भौतिक हों या अभौतिक, वैश्विक स्तर पर संचार के साधनों और तकनीक से जुड़ गये हैं। इससे संस्कृति संवाद की प्रक्रिया नये और आसान रूप में रूपान्तरित होने लगी है। जहाँ हमारी आदतें रुचि, क्षमताएँ, कला, विश्वास अधिकतर बुजुर्ग या बड़े लोगों से प्रदत्त व प्रभावित हुआ करती थीं। वहीं आज पुरानी व्यवस्था नई व्यवस्था में बदल पुस्तकें, टी.वी. कार्यक्रम, मीडिया, सोशल मीडिया और इंटरनेट से संचालित होने लगी हैं।
वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने संस्कृति के बहुत से हिस्सों को व्यापारिक और व्यावसायिक बना दिया है। उपभोग और नई जीवन शैली ने सभी तरफ से प्रभावित किया है। वैश्विक प्रक्रिया ने भारतीय सांस्कृतिक उपादानों पर क्या प्रभाव डाला है। प्रस्तुत शोध पत्र में यही जानने का प्रयास किया गया है जो कि द्वितीयक तथ्यों के अवलोकन और विश्लेषण पर आधारित है।