सूचना के अधिकार को मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा 1948 के द्वारा मान्यता मिली, जिसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता है एवं प्रत्येक व्यक्ति को सभी प्रकार की सूचना लेना, प्राप्त करना और देने की स्वतंत्रता का अधिकार है। 'द इन्टरनेशनल कॉवनेंट ऑन सिविल एण्ड पालिटिकल राइट्स, 1966 में भी नागरिकों को सूचना प्राप्त करने का अधिकार है। यूरोपियन कॉवनेंट ह्यूमन राइट्स. 1996 की धारा 10 के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता है, एवं इस अधिकार में बिना किसी हस्तक्षेप के सूचना प्राप्त करने का अधिकार नागरिकों को प्राप्त है स्कैंडिनेवियाई देशों में स्वीडन ऐसा पहला देश है जिसने लगभग 240 वर्षों पहले अपने नागरिकों को यह मूल अधिकार प्रदान किया। सूचना का अधिकार लागू करने वाला भारत 55वाँ देश है आज इस अधिकार को एक मौलिक मानवीय अधिकार की मान्यता दी जा चुकी है। भारत में इस अधिकार के लिए सर्वप्रथम राजस्थान राज्य के ग्रामीणों ने लड़ाई लड़ी।
एस.पी. गुप्ता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया" के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा "अगर एक समाज लोकतांत्रिक व्यवस्था को पूरे शिद्दत के साथ स्वीकार करता है, तो वहाँ के नागरिकों को यह जानने का पूरा अधिकार है कि उनकी सरकार क्या कर रही है"। 1989 के दौर में प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह ने स्वच्छ और पारदर्शी प्रशासन के लिए सूचना का अधिकार कानून को लागू करने की बात कही भारत में सूचना का अधिकार अधिनियम 12 अक्टूबर 2005 में लागू हुआ जिसमें कुल 31 धारायें 6 अध्याय एवं 2 अनुसूची है।