तालिबान का उदय 1990 के दशक में अफगानिस्तान में एक धूमकेतू जैसे हुआ था। जल्दी ही उसने अफगानिस्तान के 90% इलाके पर अधिकार कर लिया। लेकिन यह केवल एक संयोग नहीं था। इसके पीछे अमेरिका की सुविचारित तेल कूटनीति थी। नवजात मध्य एशियाई गणराज्यों के पास न सिर्फ प्रचुर तेल एवं गैस भण्डार थे बल्कि ये सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण थे। इसलिए अमेरिका न केवल इस क्षेत्र पर अपना अधिकार चाहता था बल्कि यहां के तेल का दोहन पाकिस्तान के कराची बन्दरगाह से करना चाहता था। क्योंकि वह मध्य एशियाई तेल दोहन से रूस और ईरान दोनों को दूर रखना चाहता था। परिणामतः अमेरिका ने अपने सनातन सहयोगी पाकिस्तान की सहायता से पहले से मौजूद मुजाहिदीनों को संगठित कर तालिबान नामक नयी शक्ति पैदा की जिससे गृहयुद्धग्रस्त अफगानिस्तान सिर्फ एक राजनीतिक शक्ति के अधीन हो सके और पाइप लाइन बिछाई जा सके। किन्तु कालान्तर में तालिबान अमेरिका के लिए भस्मासुर बन गया और कराची बन्दरगाह से मध्य एशियाई तेल दोहन की अमेरिकी योजना फलीभूत न हो सकी।