स्त्री और पुरुष समाजरुपी गाड़ी के दो पहिये के समान हैं, इनमें से अगर कोई कमजोर हो जाए तो समाज का संतुलन बिगड़ जाता है। किसी भी देश, समाज में नारी की स्थिति कैसी है, वह समाज की प्रगति का सूचक है। इस दृष्टि से प्राचीन भारत में नारी की स्थिति श्रेष्ठ कही जा सकती है, उनमें पर्दा प्रथा, बाल विवाह, दहेज जैसी कुप्रथाएँ प्रवेश नहीं की थीं। वे स्वतंत्रतापूर्वक राजनीतिक, सामाजिक कार्य व धर्म-साहित्य के क्षेत्र में हिस्सा लेती थीं।' उन्हें शिक्षा भी प्राप्त होती थी। घोषा, लोपा, अपाला, जैसी विदुषी महिलाओं को कौन नहीं जानता ।
मध्ययुग में इस्लाम व सिक्ख धर्म का उदय हुआ। दोनों ही धर्मों में नारी को पर्याप्त स्वतंत्रता दिये जाने की बात हुई पर यह व्यवस्था परिस्थिति के अनुकूल नहीं रही। भारत में मुसलमानों के आगमन व भारतीय क्षेत्र में प्रवेश के साथ ही नारी की स्थिति गिरती गई । यह सत्य है कि तुर्क अफगान काल में शाह तुर्कन, रजिया सुल्तान मलिका-ए-जहाँ, बीबी राजी, बीबी अन्या, कमला देवी तथा देवता देवी जैसी प्रभावशाली व योग्य नारियों का प्रादुर्भाव हुआ।