बाल अपराध और राष्ट्रीय नीतियाँ

डॉ. ए.एन. शर्मा - सहायक प्राध्यापक (समाजशास्त्र) शासकीय महाविद्यालय, बोरी (दुर्ग). भारत

आम तौर पर अपराधी का स्मरण करते ही एक शातिर व खूंखार चेहरा हमारी नजरों के सामने आता है। यह पूरा सच नहीं है। अपराध के क्षेत्र में आज मासूम और बच्चों और किशोरों की भी संख्या बढ़ती जा रही है। यह सामाजिक जीवन के लिए एक बड़ी चुनौती है। न जाने ऐसे कौन से कारण हैं जो उन्हें अपराध जगत में कदम रखने को मजबूर कर रहे हैं। साथ ही यह भ सोचने को कि इस समस्या के निराकरण में राष्ट्रीय नीतियाँ कितनी सफल हो रही हैं।


बाल्यावस्था निर्मल जल के समान है, उसे जिस पात्र में रखेंगें उसी का स्वरूप ग्रहण कर लेगा। तेजी से बदलती वर्तमान परिस्थितियाँ बाल मन को इतना अधिक प्रभावित कर रही है कि वह कभी-कभी अपना अनुकूलन उससे नहीं कर पाता और अपने भावों को प्रकट करने के लिए समाज व कानून विरोधी आचरण की ओर प्रवृत्त होने लगता है।

बाल अपराध इस तरह बढ़ रहे हैं कि अनुमान कर सकना मुश्किल है। विभिन्न देशों में बाल अपराधों के लिए सर्वेक्षण व अध्ययन होते रहे हैं किन्तु कहीं की भी रिपॉट पूरी जानकारी नहीं दे पाती। अतः आवश्यकता इस बात की है कि समाज के सभी हितचिन्तकों को, अभिभावकों को इस बुराई की ओर ध्यान दिया जाना चाहिये। बच्चों का लालन-पालन, उनकी शिक्षा-दीक्षा में कर्तव्यों की इतिश्री नहीं समझा जाना चाहिये बल्कि उन्हें सही रास्ते पर ले जाने उन्हें अपराधी जीवन की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति को प्रारंभ में ही रोके जाने की आवश्यकता है। इन आचरणों को रोकने में समाज के साथ-साथ हमारी राष्ट्रीय नीतियाँ भी कारगर सिद्ध हो सकती हैं। इन्हीं बिन्दुओं का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत शोध-पत्र में किया गया है।

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How to cite this article:
शर्मा ए एन . (2019) : बाल अपराध और राष्ट्रीय नीतियाँ रिसर्च एक्सप्रेशन 3 : 4 & 5 (2019) 70 - 74