छत्तीसगढ़ के सामंती राज्य मध्यप्रांत के अंतर्गत आते थे इन राज्यों के समूहों में किसी भी दृष्टि से कोई समरूपता नहीं थी। यह ऐसे इकाईयों से मिल कर बने थें, जो भौगोलिक संरचना और निवासियों की सभ्यता के स्तर की दृष्टि से एक-दूसरे से पर्याप्त भिन्नता रखते थे। ये राज्य कलचुरी अथवा गोंड राजाओं की अधिसत्ता को स्वीकार करते थे। इस काल में जमींदार अपने अधिपति को किसी भी प्रकार से कर, भेंट या टकौली अदा नहीं करते थे, परन्तु आवश्यकतानुसार अपने अधिपति या केन्द्रीय शक्ति को सैनिक, आर्थिक सहायता पहुंचाते थे।' सन् 1741 ई. में कलचुरी सत्ता के पतनोपरांत छत्तीसगढ़ में मराठों की सत्ता स्थापित हुई। मराठों ने छत्तीसगढ़ की जमींदारियों को यथावत् रहने दिया तथा अपने लाभार्थ कुछ नयी जमींदारियाँ जैसे राजनांदगाँव, खुज्जी और छुईखदान बनाई। 1818 से 1830 ई का समय ब्रिटिश संरक्षण काल था । इस समयावधि में जमीदारियों के साथ लिखित सम्बन्ध स्थापित किया गया। ब्रिटिश अधीक्षक मि. एग्न्यू ने जमींदारों से लिखित दस्तावेज पर हस्ताक्षर कराए, जिसे इकरारनामा कहा गया। जमींदारों से एक निश्चित राशि टकौली के रूप में वसूल की जाने लगी। उस समय यहाँ 27 जमींदारियाँ थी ।
सन् 1857 ई. की क्रान्ति के समय अनेक देशी राज्यों व जमींदारियों ने तन-मन-धन से ब्रिटिश सरकार को सहयोग देकर क्रांति को असफल बना दिया था क्रांति के समय देशी राज्यों तथा जमीदारियों के सहयोग ने ब्रिटिश सरकार को यह विश्वास दिला दिया कि यदि भारत में ब्रिटिश साम्राज्य कायम रखना हैं तो इन्हें यथावत् रखना जरूरी हैं। फलस्वरूप 1858 ई. में महरानी विक्टोरिया ने एक नवीन नीति की घोषणा की जिसके द्वारा देशी राज्यों तथा जमींदारियों को उनके अधिकार लौटा दिए गए एवं उन्हें सनदें प्रदान की गई।
भारत के मध्यवर्ती भाग में 1861 ई. में मध्यप्रान्त नामक एक नये प्रान्त का निर्माण किया गया। उस समय यहां की जमींदारियों की समस्या उत्पन्न हुई कि उनकी व्यवस्था एवं प्रबन्ध किस प्रकार किया जाए। अंततः 1862 में यह निर्णय लिया गया कि बहुत पुराने, शक्तिशाली और अधिक आबादी वाली जमींदारियों को राज्य का दर्जा देकर शेष जमींदारियों को मध्यप्रान्त के खालसा क्षेत्र में शामिल कर लिया जाए। तद्नुसार छत्तीसगढ़ की शक्तिशाली और अधिक आबादी वाली जमींदारियों को सामंती राज्य अर्थात् यूडेटरी स्टेट घोषित किया गया। यहां के शासको को यूटेटरी चीफ कहा गया, जो अपने राज्यों का शासन पोलिटिकल एजेन्ट की सहमति से किया करते थे। इन सब को शासन संबंधी अधिकार ब्रिटिश सरकार की ओर से प्रायः एक समान प्राप्त था उस समय छत्तीसगढ़ में चौदह राज्य थे जिसमें पाँच उडिया भाषी थे तथा शेष नौ हिन्दी भाषी थे जब सन् 1905 में बंगाल प्रान्त का विभाजन और पुनर्गठन किया गया, तब उडिया भाषी पाँच राज्यों को बंगाल प्रांत में सम्मिलित कर दिया गया तथा छोटा नागपुर कमिश्नरी के पाँच राज्य जो हिन्दी भाषी थे छत्तीसगढ़ में जोड दिये गये। इस प्रकार छत्तीसगढ़ अंचल में चौदह राज्य बनाये गये।