पश्चिम बंगाल के प्रान्तिक लोगों के सशक्तीकरण का अतिकथन (१६७७–२००१) : दलितों और महिलाओं और महिलाओं के लिए विशेष संदर्भ ।

अर्नब अधिकारी रवीन्द्र - भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता 700050

राज्य स्तरीय मशीनरी पर कब्जा करने के बाद, सीपीआई (एम) ने वादा किया कि ये सुशासन प्रदान करेंगे और वैकल्पिक राजनीति को बढ़ावा देंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वे राजनीतिक शक्ति का विकेंद्रीकरण करने जा रहे हैं और यह भी आश्वासन दिया है कि निचले तबके के लोग इससे लाभान्वित होंगे लेकिन वास्तविकता उनके वादों से बहुत परे थी राजनीतिक सशक्तीकरण के बारे में बंगाल के प्रान्तिक 1 लोग खासकर दलित और महिलाएँ पीछे ही रहे। भारत में, जाति, महिला और राजनीति से संबंधित कार्यों की संख्या बड़े पैमाने में है, क्योंकि हमारे देश में जाति न केवल एक महत्वपूर्ण तत्व है, बल्कि हमारे समाज की एक मौलिक संस्था भी है और अब लैंगिक मुद्दों का सवाल भी बहुत ही अनिवार्य है। हमें इन मुद्दों को इसकी पृष्ठभूमि के साथ समझने की आवश्यकता है औपनिवेशिक युग की शुरुआत से ही आधुनिकीकरण और सदियों पुरानी विरासत की प्रगति के बीच एक परस्पर विरोधी और सहअस्तित्व के सम्पर्क थे क्योंकि सामाजिक जीवन में यह मूल रूप से पारंपरिक है, और बहुधा पहचान और खंडीय विभाजन को सम्मिलित करते हुए यह पीढ़ियों के माध्यम से भारतीय सभ्यता को चित्रित किया था। जैसा कि भारतीय सामाजिक प्रणाली पारंपरिक रूप से जाति विभाजन पर आधारित है, राष्ट्रीय स्तर या राज्य स्तर या ग्रासरूट स्तर पर राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर जाति की संस्था का प्रभाव अक्सर होता है। लेकिन महिला सशक्तीकरण की आवाज हमेशा गौण बनी रही। बंगाल के मामले में, हमने शुरुआत से ही चिरस्थायी बंदोबस्त के कारण पाया, पश्चिमी शिक्षा, व्यापार और कॉमर्स के कारण, बंगाल के शहरी इलाकों में ग्रामीण एलिट भूमि स्वामी और मध्यम वर्ग के उमरने का मौका मिला है। इस तरह के विकास ने एक स्थानीय भूमि स्वामी समूह के उद्भव को प्रतिबंधित कर दिया और परिणामस्वरूप स्थानीय रूप से प्रमुख जाति के कामकाज को रोक दिया। इस प्रकार बंगाल में जाति व्यवस्था कमजोर हो गई है। इस घटना ने 'भद्रलोक' बंगाली लोगों के भीतर पितृसत्तात्मक मानसिकता की मजबूत पकड़ भी स्थापित की लेकिन बंगाल के शक्तिशाली मध्यम वर्ग के रूप में, जिन्होंने तीनों उच्च जातियों (ब्राह्मण, वैद्य और कायस्थ ) के कुलीन सदस्यों ने लगभग हर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक आंदोलन में नेतृत्व प्रदान किया। पश्चिम बंगाल की राजनीति में उच्च जाति समूहों की यह प्रबलता ही वास्तविक है अब इस पत्र में पश्चिम बंगाल की संसदीय राजनीति और वर्ग राजनीति : में जाति वर्ग समीकरणों जाति की गतिशीलता और महिला प्रतिनिधित्व की ओर से राजनीतिक प्रतिनिधित्व की समग्र स्थिति को देखने का प्रयास किया गया है। यह अध्ययन इस बात को स्पष्ट रूप से बताता है कि किस प्रकार लेफ्ट की वर्गीय राजनीति दलितों और महिलाओं को मौजूदा सत्ता संरचना से अलग कर देती है, अर्थात् बंगाल की मुख्य राजनीतिक पार्टी मध्यम वर्ग, उच्च और मध्यम जाति, राजनीतिक पदानुक्रम पर पितृसत्तात्मक आधिपत्य को कैसे बनाए रखती है।


Pages 43 - 52 | 67 Views | 83 Downloads
How to cite this article:
अधिकारी ए . (2022) : पश्चिम बंगाल के प्रान्तिक लोगों के सशक्तीकरण का अतिकथन (१६७७–२००१) : दलितों और महिलाओं और महिलाओं के लिए विशेष संदर्भ । रिसर्च एक्सप्रेशन 5 : 7 (2022) 43 - 52