मानव ही अपनी वस्तुओं को अपने शरीर को तथा अपनी सामग्री को अलंकृत नहीं रखता, बल्कि प्रकृति भी अपने अंगों को अलंकृत करती है। प्रकृति स्वयं अलंकरण की प्रेमी होती है और अपने अंग-प्रत्यंग को नाना सजावट से सजाने में नये रंगा से रंगीन बनाने में उसे बड़ा आनंद आता है। कवि भी प्रकृति से शिक्षा ग्रहण करने वाला एक भावुक व्यक्ति होता है। वह भी अपनी रचनाओं को अलंकारों से सजाने का प्रेमी तथा अभ्यस्त होता है। सुंदर बनाने के लिए नयी-नयी सामग्री एकत्र करता हैं, सुनते ही लोगों के कान स्वतः ही उसकी ओर आकृष्ट हो जाते हैं अतः जिन साधनों के द्वारा काव्य या निबंध को सुंदर बनाया जाता है तथा हृदय को आकृष्ट करने की अदभुत शक्ति से वह संपन्न किया जाता है, उनमें से अलंकार ही अन्यतम साधन है। अलकार में जो वस्तु जीवनी शक्ति डालकर उसे सजीव तथा आकर्षक बनाती है, वह चमत्कार के नाम से प्रख्यात है। अलंकार का अलंकारत्व तभी है जब वह चमत्कार से मण्डित हो ।