"भारत गाँवों का देश है क्योंकि आज भी हमारे देश की कुल जनसंख्या का लगभग 6884 प्रतिशत, 833 करोड़ से अधिक भाग ग्रामीण समाज में ही निवास करता है भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि की महत्वपूर्ण भूमिका है।" "कृषि के भूमण्डलीकरण का एक अन्य तथा अधिक प्रचलित पक्ष बहुराष्ट्रीय कंपनियों का इस क्षेत्र में कृषि मदो जैसे बीज, कीटनाशक, तथा खाद के विक्रेता के रूप में प्रवेश है। इससे किसानों की महंगी खाद और कीटनाशकों पर निर्भरता बढ़ी है. जिससे उनका लाभ कम हुआ है, बहुत से किसान ऋणी हो गए हैं, तथा ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण संकट भी पैदा हुआ है। पहले कृषि परम्परागत यंत्रो से की जाती थी, जिसमें समय तो अधिक लगता था किन्तु किसी प्रकार का पर्यावरणीय अथवा पारिस्थितिकी समस्या उत्पन्न नहीं होती थी किन्तु अच्छे उत्पादन हेतु कृषि में व्यापक स्तर पर मशीनीकरण हुआ जिन क्षेत्रों में कृषि में मशीनीकरण हुआ है उन क्षेत्रों में पशुपालन का स्वरूप बदल गया है। फलत कृषि में परम्परागत खाद का भी प्रयोग कम होने लगा है। कृषको का आधुनिक खेती के प्रति आकर्षण ने परम्परागत कृषि तकनिकी तथा विधियों को लुप्ती के कागार पर लाकर खड़ा कर दिया है।
मौजूदा समय में जरूरत है रासायनिक खेती के बेहतर विकल्प तलाशने की और वह जैविक खेती के रूप में सामने आ रहा है। अर्थात फिर से प्राकृतिक तरीके से खाद तैयार कर खेती करना। छत्तीसगढ़ के वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेस बघेल ने कहा है कि "गाँवों में स्वयं के संसाधनों से समृद्ध बनने की क्षमता है, जरूरत है समुचित संयोजन एवं समन्वय की छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी नरवा, गरुवा, घुरुवा, अउ बाडी, गाँव ला बचाना हे संगवारी यह बात कहते समय मेरे मन में छत्तीसगढ़ के पूरे ग्रामीण परिदृश्य की तस्वीर उमर जाती है जहाँ नालों में बहता पानी है, जहाँ पशुधन की बहुतायत है, जहाँ गोबर तथा अन्य ग्रामीण कचरे के प्रसंस्करण से बड़े पैमाने पर जैविक खाद के उत्पादन की अपार संभावनाएं है, और जहाँ हर किसान के घर अपने उपयोग के लिए लगाई जाने वाली बाड़ी है, जिसमें वह सब्जी, फल-फूल का उत्पादन करता है और इस तरह वह अपने पोषण तथा आर्थिक स्थिति को भी मजबूत करता