भारतीय स्वतंत्रता संग्राममें 1930 का वन सत्याग्रह छत्तीसगढ़ में एक महत्वपूर्ण आंदोलन था, जो महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत आयोजित किया गया। इस आंदोलनकी पृष्ठभूमि ब्रिटिश सरकार के कठोर वन कानूनों से जुड़ी थी, जिन्होंने ग्रामीण और आदिवासी समुदायों को जंगलों के उपयोग से वंचित कर दियाथा। अंग्रेजी शासन ने वनों पर अपना अधिकार स्थापित करते हुए स्थानीय लोगों के लिए लकड़ीकाटने, पशुओं को चराने और वन उत्पादों का उपयोग करने पर प्रतिबंधलगा दिया। इससे छत्तीसगढ़ के आदिवासियों और किसानों की आजीविका पर गहरा असर पड़ा,जिससे उनका असंतोष बढ़ा। जब गांधीजी ने 1930 मेंसविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की, तो छत्तीसगढ़ में भी वन सत्याग्रहके रूप में इसका प्रभाव दिखाई दिया। इस आंदोलन में नरसिंह नारायण सिंह, ठक्कर बापा और कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने नेतृत्व किया। सत्याग्रहियोंने ब्रिटिश सरकार के कानूनों की अवहेलना करते हुए जंगलों में प्रवेश किया, लकड़ी काटी और वन उत्पादों का उपयोग किया। इस अहिंसक विरोध को कुचलने के लिएब्रिटिश सरकार ने कठोर कदम उठाए और बड़ी संख्या में सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर लिया।हालांकि, इस दमन के बावजूद छत्तीसगढ़ के लोगों का संघर्ष जारीरहा, जिससे स्वतंत्रता आंदोलन को और बल मिला। छत्तीसगढ़ के इसवन सत्याग्रह ने न केवल ब्रिटिश सरकार के अन्यायपूर्ण नीतियों का विरोध किया,बल्कि ग्रामीण और आदिवासी समुदायों में स्वतंत्रता और अधिकारों की भावनाको भी मजबूत किया। इस आंदोलन ने भविष्य में जनआंदोलनों के लिए प्रेरणा दी और स्वतंत्रतासंग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस तरह, 1930 का वनसत्याग्रह छत्तीसगढ़ के इतिहास में स्वतंत्रता संग्राम के साहसिक अध्यायों में से एकबन गया।
प्रमुख शब्दावाली : महात्मा गांधी, आदिवासी समुदायों, सविनय अवज्ञा आंदोलन,स्वतंत्रता संग्राम