18 वीं सदी तक एशिया आर्थिक रूप से सबसे समृद्ध रहा है, जिसका विश्व सकल घरेलु उत्पाद में लगभग 59 प्रतिशत हिस्सा था। इस काल को ’एशिया शताब्दी’ के नाम से भी जाना जाता है। (मैडिसन, 2001) लेकिन उन्नीसवीं शताब्दी में एशिया का अधिकांश भाग औपनिवेशिक शासन के अधीन रहा। फलतः बीसवीं सदी में जापान के अतिरिक्त कोई भी ऐसा देश नहीं था जो विश्व में अपनी सामरिक और आर्थिक हैसियत रखता हो । परन्तु आज एशिया फिर विश्व आर्थिक शक्ति के रूप खड़ा हो रहा है। एशिया की अर्थव्यवस्था अगर इसी गति से आगे बढ़ते रहे तो 2050 तक विश्व सकल घरेलु उत्पाद में लगभग 55 प्रतिशत को प्रतिनिधित्व करेगा। इसमें भारत और चीन की भूमिका अहम हैं। दोनो ही देश 2050 तक लगभग 100 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था होगी। (कोहली,2011) अपनी विशाल उत्पादन क्षमता के कारण आज चीन ’वल्र्ड फेक्ट्री’ के रूप में जाना है। यही कारण है कि आज चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। चीन ने बीआरआई के माध्यम से एशिया मे पिछले दस सालों में विभिन्न क्षेत्रों में यूएसडी 530 बिलियन का निवेश किया हैं। (नेडोपील,2014) भारत भी एक्ट ईस्ट पाॅलिसी के माध्यम से एशिया के आर्थिक विकास में सहायता कर रहा है। ऐसे में अगर भारत और चीन सहअस्तित्व को स्वीकार कर मिलकर एशिया का नेतृत्व करें। तो एशिया का कायाकल्प इस प्रकार परिवर्तित होगा । कि यह 18 सदी के ’एशिया शताब्दी’ से भी उन्नत होगा। किन्तु इस मार्ग में भारत और चीन के बीच सबसे बड़ी समस्या सीमा विवाद, नदीजल विवाद, चीन पाक धुरी और अमेरिका द्वारा क्वाड को नेतृत्व आदि उनके बीच दरार ला रहा है। प्रस्तुत शोध पेपर भारत और चीन के बीच सहअस्तित्व की संभावनाओं की तलाश करना हैं। तथा एशिया देशों में उनकी भूमिका का विस्तृत विश्लेषण करना है।
महत्वपुर्ण शब्दावली : अर्थव्यवस्था, एशिया,चीन, भारत, सुरक्षा, सह अस्तित्व, विश्व ।