प्राय यही समझा जाता है कि वेदों में कर्मकाण्ड हैं, यज्ञ व देवताओं के विषय में वर्णन है किन्तु यह सही नहीं है। वेदों में वीरता एवं पुरुषार्थ के विषय में भी बहुत उच्च विचार मिलते हैं। "वेद" शब्द का अर्थ ही ज्ञान होता है। इस तरह उसमें विभिन्न ज्ञान-विज्ञान का वर्णन है। वीर शब्द में वि उपसर्ग पूर्वक ईर् धतु से बनता है जिसका अर्थ साहसी या पराक्रमी होता है वीर शब्द की व्युत्पत्ति निरूक्त में इस प्रकार की गई है- "वीरयति अभित्रान" अर्थात जो शत्रुओं को अनेक प्रकार से कंपा देता है उसे वीर कहा जाता है। इस शोध लेख में यही विचार किया गया है वेद भाग्य पर निर्भर रहने को नहीं कहते अपति कर्म करने की सीख देते हैं। वेद की शिक्षा यह नहीं है कि तुम संसार में अकर्मण्य एवं भाग्यवादी बनकर निष्क्रिय बैठे रहो। कर्मरहित भक्तिवाद और भाग्यवाद के प्रचार से भारत को बहुत हानि हुई है। वेद कर्मयोग एवं वीरता की बात करता है।